मागुर मछली खुद कैंसर का कारण नहीं बनती। लेकिन समस्या तब शुरू होती है जब इस मछली को गंदे नालों, सीवर और ऐसे स्थानों पर पाला जाता है जहां केमिकल कचरा मौजूद होता है। ऐसे हालात में इस मछली के शरीर में हेवी मेटल्स और अन्य कैंसरकारी (Carcinogenic) रसायनों के जमा होने की आशंका रहती है।अगर ऐसी मछली बिना किसी जांच के सीधे खाने में आ जाए, तो उसमें कई जहरीले तत्व हो सकते हैं, जो डीएनए को नुकसान पहुंचा सकते हैं और कैंसर का खतरा बढ़ा सकते हैं। इसलिए हमेशा लाइसेंस प्राप्त फार्म से खरीदी गई मछली ही खाएं। नालों और तालाबों से लाई गई सस्ती मछली से बचें।
अगर आप बच्चों, बुज़ुर्गों या रोगियों को मागुर मछली खिला रहे हैं, तो बहुत कम मात्रा में दें और अगर मछली की गंध या रंग अजीब लगे, तो उसे बिल्कुल न खाएं। अगर मछली खानी हो, तो रोहू, कतला जैसी साफ और सुरक्षित मछलियों को प्राथमिकता दें।