Monday, September 22, 2025

RSS Chief mohan bhagwat on american tariffs and H1B visa section | भागवत बोले- भारत आंख मूंदकर आगे नहीं बढ़ सकता: अमेरिकी टैरिफ और  H-1B वीजा फीस पर जो जरूरी हो करना चाहिए

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नई दिल्ली1 घंटे पहले

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मोहन भागवत 21 सितंबर को दिल्ली में एक बुक लॉन्च कार्यक्रम में पहुंचे थे। - Dainik Bhaskar

मोहन भागवत 21 सितंबर को दिल्ली में एक बुक लॉन्च कार्यक्रम में पहुंचे थे।

राष्ट्रीय स्वयं सेवक (RSS) चीफ मोहन भागवत ने अमेरिका के भारत पर बढ़ाए टैरिफ और H-1B वीजा फीस पर कहा, ‘भारत को इस स्थिति से बाहर निकलने के लिए जो भी जरूरी हो करना चाहिए, लेकिन हम आंख मूंदकर आगे नहीं बढ़ सकते।’

उन्होंने कहा- भारत और अन्य देशों के सामने आज जो समस्याएं हैं, वे पिछले 2 हजार सालों से अपनाई गई उस व्यवस्था का नतीजा हैं, जो विकास और सुख की खंडित दृष्टि पर आधारित रही है। इसलिए हमें अपनी राह खुद तय करनी होगी।

RSS चीफ ने कहा कि हम इन हालात से निकलने का रास्ता ढूंढ लेंगे, लेकिन भविष्य में कभी न कभी हमें फिर ऐसे ही हालात का सामना करना पड़ेगा। क्योंकि इस खंडित दृष्टि में हमेशा ‘मैं और बाकी दुनिया’ या ‘हम और वे’ की सोच रहती है।

उन्होंने कहा कि भारत को भविष्य में ऐसी समस्याओं से बचने के लिए विकास और प्रगति के सनातन दृष्टिकोण का पालन करते हुए अपना रास्ता खुद बनाना शुरू करना होगा। भागवत ने यह बात रविवार को दिल्ली में एक बुक लॉन्च कार्यक्रम में कहीं।

भागवत बोले: अमेरिका की सोच वह सुरक्षित रहे

भागवत ने किसी का नाम लिए बिना कहा- तीन साल पहले अमेरिका के एक प्रमुख व्यक्ति से मुलाकात हुई थी। उन्होंने सुरक्षा, आतंकवाद-निरोध और अर्थव्यवस्था सहित विभिन्न क्षेत्रों में भारत-अमेरिका साझेदारी और सहयोग की संभावनाओं पर बात की, लेकिन हर बार उन्होंने यही दोहराया कि ‘बशर्ते अमेरिकी हितों की रक्षा हो।’

RSS चीफ ने कहा कि हर किसी के अलग-अलग हित हैं। इसलिए टकराव चलता रहेगा। जो ऊपर है, वही नीचे वालों को खा जाएगा। जो फूड चेन में सबसे ऊपर है, वह सबको खा जाएगा और फूड चेन में सबसे नीचे रहना एक अपराध है। सिर्फ राष्ट्र हित ही मायने नहीं रखता। मेरा भी हित है। मैं सब कुछ अपने हाथ में चाहता हूं।

भागवत बोले- हमें अपने दृष्टिकोण से सोचना होगा

RSS चीफ ने कहा- सिर्फ भारत ने ही पर्यावरणीय मुद्दों पर अपनी सभी प्रतिबद्धताओं को पूरा किया है। और किसने कीं? क्योंकि कोई प्रामाणिकता नहीं है। अगर भारत विश्वगुरु और विश्वामित्र बनना चाहता है, तो उसे अपने दृष्टिकोण के आधार पर अपना रास्ता खुद बनाना होगा।

उन्होंने कहा कि अगर हम इसे प्रबंधित करना चाहते हैं, तो हमें अपने दृष्टिकोण से सोचना होगा। सौभाग्य से हमारे देश का दृष्टिकोण पारंपरिक है, जीवन के प्रति यह दृष्टिकोण पुराना नहीं है, यह सनातन है। यह हमारे पूर्वजों के हजारों सालों के अनुभवों से बना है।

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