नई दिल्ली6 मिनट पहले
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अमेरिका की तरफ से H-1B वीजा के लिए एप्लिकेशन फीस बढ़ाने पर राहुल गांधी ने पीएम मोदी पर निशाना साधा। राहुल ने शनिवार को सोशल मीडिया X पर लिखा कि भारत के पास कमजोर प्रधानमंत्री है। राहुल ने 2017 का पोस्ट फिर से शेयर किया, उस वक्त भी उन्होंने मोदी पर आरोप लगाया था कि पीएम ने H-1B वीजा पर अमेरिका से बात नहीं की थी।
वहीं कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने लिखा कि मोदी ने बर्थडे पर जो रिटर्न गिफ्ट दिया है उससे हर भारतीय दुखी है। राष्ट्रीय हित सबसे पहले है। गले मिलना और लोगों से मोदी-मोदी के नारे लगवाना विदेश नीति नहीं है।
दरअसल अमेरिका अब H-1B वीजा के लिए एक लाख डॉलर (करीब 88 लाख रुपए) एप्लिकेशन फीस वसूलेगा। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने शनिवार को व्हाइट हाउस में इस ऑर्डर पर साइन किए। अब तक H-1B वीजा की एप्लिकेशन फीस 1 से 6 लाख रुपए तक थी।

खड़गे ने लिखा- 70% H-1B वीजा धारक भारतीय हैं खड़गे ने आगे लिखा कि H-1B वीजा पर एक लाख डॉलर की एनुअल फीस भारतीय टेक कर्मचारियों पर सबसे ज्यादा असर डालता है, 70% H-1B वीजा धारक भारतीय हैं। भारत पर 50% टैरिफ पहले ही लगाया जा चुका है। अकेले 10 क्षेत्रों में भारत को ₹2.17 लाख करोड़ का नुकसान होने का अनुमान है।
विदेश नीति का मतलब है हमारे राष्ट्रीय हितों की रक्षा करना। भारत को सर्वोपरि रखना, और समझदारी व संतुलन के साथ मित्रता को आगे बढ़ाना। इसे दिखावटी दिखावा नहीं माना जा सकता जिससे हमारी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचने का खतरा हो।

गोगोई बोले- मोदी की चुप्पी देश के लिए बोझ बन गई गौरव गोगोई ने कहा, एच1-बी वीजा पर हालिया फैसले से अमेरिकी सरकार ने भारत के प्रतिभाशाली लोगों के भविष्य को चोट पहुंचाई है। मुझे आज भी पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की वो बात याद है जब अमेरिका में हमारी महिला राजदूत का अपमान किया गया था। तो पीएम ने कैसे बदला लिया। लेकिन आज मोदी की रणनीतिक चुप्पी और दिखावटी प्रचार भारत और उसके नागरिकों के राष्ट्रीय हित के लिए एक बोझ बन गया है।
अब जानिए क्या है H-1B वीजा
H-1B वीजा एक एक नॉन-इमिग्रेंट वीजा है। यह वीजा लॉटरी के जरिए दिए जाते रहे हैं क्योंकि हर साल कई सारे लोग इसके लिए आवेदन करते हैं।
यह वीजा स्पेशल टेक्निकल स्किल जैसे IT, आर्किटेक्चर और हेल्थ जैसे प्रोफेशन वाले लोगों के लिए जारी होता है।
इसकी समय सीमा 3 साल के लिए होती है, लेकिन जरूरत पड़ने पर 3 साल बढ़ाया जा सकता है। रिन्यू करवाने पर फीस (6 लाख तक) के बराबर ही शुल्क ही देना होता था।
अब नियमों में बदलाव के बाद हर साल 88 लाख रुपए लगेंगे।
हर साल 85 हजार H-1B वीजा जारी होते हैं
अमेरिकी सरकार हर साल 85,000 एच-1बी वीजा जारी करती है, जिनका इस्तेमाल ज्यादातर तकनीकी नौकरियों में होता है। इस साल के लिए आवेदन पहले ही पूरे हो चुके हैं।
आंकड़ों के अनुसार, केवल अमेजन को ही इस साल 10,000 से ज्यादा वीजा मिले हैं, जबकि माइक्रोसॉफ्ट और मेटा जैसी कंपनियों को 5,000 से अधिक वीजा स्वीकृत हुए हैं।
सरकारी आंकड़े बताते हैं कि पिछले साल H-1B वीजा का सबसे ज्यादा फायदा भारत को मिला। हालांकि इस वीजा कार्यक्रम की आलोचना भी होती है।
कई अमेरिकी तकनीकी कर्मचारियों का कहना है कि कंपनियां H-1B वीजा का इस्तेमाल वेतन घटाने और अमेरिकी कर्मचारियों की नौकरियां छीनने के लिए करती हैं।
H-1B वीजा में बदलाव से भारतीयों पर असर
H-1B के नियमों में बदलाव से 2,00,000 से ज्यादा भारतीय प्रभावित होंगे। साल 2023 में H-1B वीजा लेने वालों में 1,91,000 लोग भारतीय थे। ये आंकड़ा 2024 में बढ़कर 2,07,000 हो गई।
भारत की आईटी/टेक कंपनियां हर साल हजारों कर्मचारियों को H-1B पर अमेरिका भेजती हैं। हालांकि, अब इतनी ऊंची फीस पर लोगों को अमेरिका भेजना कंपनियों के लिए कम फायदेमंद होगा।
71% भारतीय H-1B वीजा धारक हैं और यह नई फीस उनके लिए बड़ा आर्थिक बोझ बन सकती है। खासकर मिड-लेवल और एंट्री-लेवल कर्मचारियों को वीजा मिलना मुश्किल होगा। कंपनियां नौकरियां आउटसोर्स कर सकती हैं, जिससे अमेरिका में भारतीय पेशेवरों के अवसर कम होंगे।

इंफोसिस जैसी कंपनियां सबसे ज्यादा H-1B स्पॉन्सर करती हैं बता दें कि भारत हर साल लाखों इंजीनियरिंग और कंप्यूटर साइंस के ग्रेजुएट तैयार करता है, जो अमेरिका की टेक इंडस्ट्री में बड़ी भूमिका निभाते हैं। इंफोसिस, TCS, विप्रो, कॉग्निजेंट और HCL जैसी कंपनियां सबसे ज्यादा अपने कर्मचारियों को H-1B वीजा स्पॉन्सर करती हैं।
कहा जाता है कि भारत अमेरिका को सामान से ज्यादा लोग यानी इंजीनियर, कोडर और छात्र एक्सपोर्ट करता है। अब फीस महंगी होने से भारतीय टैलेंट यूरोप, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, मिडिल ईस्ट के देशों की ओर रुख करेगा।

ट्रम्प प्रशासन बोला- H-1B का सबसे ज्यादा गलत इस्तेमाल हुआ व्हाइट हाउस के स्टाफ सेक्रटरी विल शार्फ ने कहा कि H-1B वीजा प्रोग्राम उन वीजा सिस्टम में से एक है जिसका सबसे ज्यादा गलत इस्तेमाल हुआ। इसका मकसद उन सेक्टरों में काम करने वाले हाई स्किल्ड लेबरर्स को अमेरिका में आने की इजाजत देना है, जहां अमेरिकी काम नहीं करते।
विल शार्फ ने कहा- नए नियम के तहत, कंपनियां अपने लोगों को H-1B वीजा स्पॉन्सर करने के लिए एक लाख डॉलर फीस चुकाएंगी। इससे यह यह तय होगा कि विदेशों से जो लोग अमेरिका आ रहे हैं, वे सच में बहुत ज्यादा स्किल्ड हैं और उन्हें अमेरिकी कर्मचारी से रिप्लेस नहीं किया जा सकता।
EB-1 और EB-2 वीजा की जगह लेगा गोल्ड कार्ड
इसके लिए एक सरकारी वेबसाइट (https://trumpcard.gov/) बनाई गई है, जहां लोग अपना नाम, ईमेल और क्षेत्र की जानकारी देकर आवेदन शुरू कर सकते हैं। आवेदकों को 15,000 डॉलर की जांच फीस देनी होगी और सख्त सुरक्षा जांच से गुजरना होगा।
कॉमर्स सेक्रेटरी हॉवर्ड लुटनिक के मुताबिक, यह गोल्ड कार्ड मौजूदा EB-1 और EB-2 वीजा की जगह लेगा। एक महीने के भीतर अन्य ग्रीन कार्ड श्रेणियां बंद हो सकती हैं। EB-1 वीजा अमेरिका का एक स्थायी निवास (ग्रीन कार्ड) वीजा है।
EB-2 वीजा भी ग्रीन कार्ड के लिए है, लेकिन उन लोगों के लिए जो उच्च शिक्षा (मास्टर्स या उससे ऊपर) की योग्यता रखते हों।
‘ट्रम्प गोल्ड कार्ड’ और ‘प्लेटिनम कार्ड’ के बारे में जानिए…

ट्रम्प की पत्नी मेलानिया को 1996 में H1-बी वीजा मिला था
अमेरिका में H1-बी वीजा प्रोग्राम की शुरुआत 1990 में उन लोगों के लिए की गई थी, जिनके पास साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग, मैथ या ऐसे सब्जेक्ट से ग्रेजुएशन या उच्च शिक्षा की डिग्री हो, जिसमें नौकरियां मिलना मुश्किल माना जाता है।
H-1बी वीजा तीन से छह साल के लिए अप्रूव किया जाता है। बता दें कि कि ट्रम्प की पत्नी और फर्स्ट लेडी मेलानिया ट्रम्प को मॉडलिंग के लिए अक्टूबर 1996 में H1-बी वीजा मिला था। मेलानिया का जन्म स्लोवेनिया में हुआ था।
अब तक अमेरिका हर साल 85,000 H-1B वीजा लॉटरी सिस्टम के जरिए देता आ रहा है। इस साल, अमेजन ने अब तक सबसे ज्यादा H-1B वीजा हासिल किए हैं। अमेजन को 2025 में 10,000 से ज्यादा वीजा मिले हैं। उसके बाद TCS, माइक्रोसॉफ्ट, एपल और गूगल है।

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