लेह11 मिनट पहले
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लेह में रविवार को कर्फ्यू का पांचवां दिन। पहले लगा कि कर्फ्यू में ढील होगी तो लोग खुलकर बात कह पाएंगे, पर गिनती के ही लोग बाहर निकले हैं। हर तरफ सन्नाटा। सोशल एक्टिविस्ट सोनम वांगचुक की गिरफ्तारी के बावजूद शांति बनी हुई है।
24 सितंबर की हिंसा में 3 युवा और 46 वर्षीय एक पूर्व सैनिक सेवांग थार्चिंग मारे गए। थार्चिंग करगिल युद्ध लड़ चुके थे। 1996 से 2017 तक सैनिक और लद्दाख स्काउट्स के हवलदार के रूप में सैन्य सेवा दे चुके थे। इन चार में से दो जिग्मेट दोरजय और स्टांजिन नामज्ञाल का अंतिम संस्कार रविवार को हुआ। लोकल और राष्ट्रीय मीडिया भी इसमें शामिल होना चाहता था, लेकिन जिग्मेट के घर से 200 मी. पहले ही पुलिस ने रोककर कहा- इजाजत नहीं है।
मीडियाकर्मियों को घोड़ा चौक पर रोका गया। यहां तक पहुंचने के लिए हम जहां से गुजरे, वहां रास्ते में मिले लोगों से एक ही सवाल पूछा- क्या वांगचुक ही लद्दाख का सबसे बड़ा मुद्दा हैं या कुछ और भी हैं, जो सुलग तो वर्षों से रहे थे, फटे अब हैं?

भास्कर के सवाल पर लोकल लोगों के जवाब
- करगिल के रहने वाले लद्दाख बेरोजगार संघ के पूर्व अध्यक्ष दोरजे आंगचुक ने बताया कि लद्दाख में कोई भर्ती बोर्ड नहीं है। इसलिए नौकरी नहीं निकलतीं। अभी से ज्यादा नौकरियां तो तब निकलती थीं, जब लद्दाख केंद्र शासित क्षेत्र नहीं था। व
- वरिष्ठ शिक्षाविद और वांगचुक के समर्थक ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि लद्दाख में 26% युवा बेरोजगार हैं। अभी सरकारी भर्ती कम हो गईं। युवाओं के पास एक ही काम है- टूरिज्म। हालत ये है कि जितने टूरिस्ट नहीं आते, उससे ज्यादा ड्राइवर दिखते हैं। जिस दिन कर्फ्यू हट जाए, आप यहां के नौजवानों से बात कीजिए, अंदाजा हो जाएगा कि वे पत्थरबाज हैं या मेधावी।
- लद्दाख के पूर्व काउंसलर गुरमेत दोरजे चरवाहों की मांग को दरकिनार किए जाने पर सवाल उठाते हैं। गुरमेत कहते हैं, ‘मैं उसी चंग्पा समुदाय से आता हूं जो लेह-मनाली हाइवे पर अपनी बकरियां चराता है, जो पश्मीना शॉल बनाता है। चरवाहों के पांग से लेकर खरला तक करीब 150 किलोमीटर के दायरे को सौर ऊर्जा के लिए बेचा जा रहा है।

करीब 4 हजार की जनसंख्या वाले ये चरवाहे अपनी 30 से 40 हजार बकरियों को उस मैदान में साल के 8 महीने चराते हैं, आखिर वो कहां जाएंगे। सबसे बड़ी बात कि मैदान को बेचे जाने की जानकारी न मुझे दी गयी, न चरवाहों से बात की गयी। इसके खिलाफ कई बार आंदोलन हुआ, लेकिन कहीं सुनवाई नहीं है।
- लोअर लेह के मौजूदा काउंसलर शेरिंग नामज्ञान को डर है कि यहां लोकतंत्र खत्म हो रहा। कहते हैं- सरपंच, पंच, नगर पालिका के चुनाव नहीं हो रहे। हम कश्मीर के साथ थे तो कारगिल से दो विधायक, दो लेह से और एक-एक एमएलसी और एक सांसद चुने जाते थे। अब सब बंद है।
- जब पॉलिसी को तय करने वाली ग्राम और शहर के स्तर पर विधानसभा नहीं होगी तो बोर्ड, नौकरी, सांस्कृतिक प्राथमिकता, जनजातियों की रक्षा या पर्यावरण संरक्षण कैसे होगा। इस माहौल में भी हम तो बस जिंदा हैं।

चार लोगों को पुलिस हिरासत में
लद्दाख बार एसोसिएशन के अध्यक्ष मोहम्मद शफी लासू ने बताया कि कांग्रेस पार्षद समनला दोरजे नुर्बो और फुत्सोग स्टैंजिन त्सेपक, लद्दाख बौद्ध संघ के उपाध्यक्ष साविन रिगजिन और गांव के नंबरदार रिगजिन दोरजे को पुलिस हिरासत में भेजा गया है। बाकी अन्य आरोपियों, जिनमें लेह एपेक्स बॉडी और लद्दाख बौद्ध संघ के युवा नेता और छात्र शामिल हैं, को न्यायिक हिरासत में भेजा गया है।

लेह हिंसा में प्रदर्शनकारियों ने बीजेपी ऑफिस फूंक दिया था। CRPF की गाड़ी में आग लगा दी थी।
लद्दाख के लोग इतने गुस्से में क्यों हैं?
- डोमिसाइल नीति: 27 मई 2025 को एक डोमिसाइल नीति लद्दाख को मिली। लेकिन लोग इससे खुश नहीं थे, क्योंकि उनकी पहली मांग थी कि जो लोग 1989 के पहले से यहां बसे हैं, वही इसके लाभार्थी हों। इस पर सरकार नहीं मानी तो दूसरी मांग रखी कि जो लोग 2019 के बाद से यहां रहते हुए 30 साल पूरा करेंगे, उन्हें ही स्थानीय मानें, लेकिन सरकार ने उसे 15 साल कर दिया, जिससे जनता में भारी असंतोष पनपा।
- कॉलोनी सेटलमेंट: 20-25 साल पहले नुब्रा, चांगथांग आदि इलाकों से आकर लोग लेह में बसे। उन्होंने जमीनें खरीदीं और घर बनाए, लेकिन आज तक उनके घरों की रजिस्ट्री नहीं हुई। ऐसे 6-7 हजार परिवार हैं। इसी तरह, सरकार ने 1976 में जो कॉलोनियां बसाईं, जिनका लीज पीरियड 40 साल का था, वह 2016 में पूरा हो गया, इनकी लीज रिन्यू नहीं की।
- अपेक्स बॉडी की अनदेखी: राज्य के वरिष्ठ आंदोलनकारी और धार्मिक गुरु नैनटक लामा के अनुसार, ‘एपेक्स बॉडी की अनदेखी हो रही है। लोगों को डर है कि लद्दाख को छठी अनुसूची में नहीं लिया गया तो उनके राज्य का हाल भी हिमाचल के मनाली जैसा हो जाएगा।
- वांगचुक के खिलाफ एक्शन: वांगचुक की संस्था की एक हजार कनाल जमीन को रद्द किए जाने से जनता नाराज है। उनका कहना है कि एक तरफ बाहरियों को जमीनें दी जा रही हैं और दूसरी तरफ जो देश के लिए शोध के स्तर पर वैकल्पिक रास्ते दे रहा है, उसे अपराधी बता रहे।

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