रिसर्च के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. सियू-वाइ फोंग के अनुसार, यह पहली बार स्पष्ट रूप से सामने आया है कि मच्छर की लार केवल वायरस के वाहक के रूप में नहीं, बल्कि शरीर की रोग-प्रतिरोधक प्रक्रिया को भी बदलने में भूमिका निभाती है। उनका कहना है कि अगर भविष्य में ‘सियालोकिनिन’ या उसके रिसेप्टर्स को निशाना बनाकर दवाएं विकसित की जाएं, तो चिकनगुनिया और अन्य मच्छर जनित रोगों में अधिक प्रभावी इलाज मिल सकता है। चिकनगुनिया एक वायरल बीमारी है जो ‘एडीज मच्छर’ के काटने से फैलती है। इसके लक्षणों में तेज बुखार, जोड़ों में सूजन और लंबे समय तक रहने वाला दर्द शामिल है। कई मरीज महीनों तक दर्द से परेशान रहते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर मच्छर की लार में मौजूद ऐसे तत्वों के असर को रोका जा सके, तो बीमारी की गंभीरता कम की जा सकती है।