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7 मिनट पहले
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लंकाकांड; 3 दिन विनती के बाद श्रीराम ने कहा- यदि समुद्र ने मार्ग नहीं दिया तो उसे सुखा दूंगा, समुद्रदेव बोले- प्रभु! तरल हूं, स्थिर मार्ग नहीं दे सकता, सेतु बनाइए
संवाद-1 : श्रीराम-विभीषण
{रावण ने जब विभीषण की सलाह नहीं मानी तो विभीषण प्रभु राम की शरण में चले गए। {विभीषण ने कहा- प्रभु! मेरे भ्राता रावण अधर्म और अहंकार में अंधे हो गए हैं। मैं आपकी शरण में आया हूं, कृपया मुझे स्वीकार करें। {सुग्रीव ने कहा- प्रभु! हो सकता है ये छल करने आए हों। ये मौका पाकर हमें वैसे ही मार देंगे, जैसे उल्लू कौओं का काम तमाम कर देता है। इन्हें मार डालना ही उचित होगा। {श्रीराम ने कहा- ‘जो मित्र भाव से मेरे पास आ गया हो, उसे मैं किसी भी तरह त्याग नहीं सकता।’
चुनौती: कई बार हम किसी मुसीबत में पड़े इंसान या शरण लेने आए व्यक्ति को शक की निगाह से देखते हैं।
सीख: भरोसा देने वाला ही असली ताकतवर होता है। संकट में पड़े इंसान को अपनाना इंसानियत की असली कसौटी है। शरणागत को स्वीकारना धर्म है।

संवाद-2 : श्रीराम-समुद्र देव
{श्रीराम ने समुद्र से विनती की- हे समुद्र देव! कृपा करके मार्ग दीजिए ताकि वानर सेना लंका पार कर सके। {तीन दिन तक वे प्रार्थना करते रहे, लेकिन समुद्र देव मौन रहे। {श्रीराम ने क्रोधित होकर बाण उठाया, कहा- यदि समुद्र देव मार्ग नहीं देंगे, तो मैं इन्हें सुखा दूंगा। धर्म यह नहीं कि विनती करते रहें और कोई उत्तर ही न दे। {घबराए समुद्र देव ने कहा- प्रभु! मैं तरल हूं, स्थिर मार्ग नहीं बना सकता, पर आपकी सेना में नल हैं, जो विश्वकर्मा जैसे गुणों से संपन्न हैं, वे सौ योजन लंबा पुल बना सकते हैं।
चुनौती: बड़े लक्ष्य देखकर ही हार मान लेते हैं या सिर्फ प्रार्थना/शिकायत करते हैं, निर्णायक कदम नहीं उठाते।
सीख: धैर्य जरूरी है, लेकिन सही समय पर निर्णायक कदम उठाना भी उतना ही जरूरी है। हर असंभव कार्य छोटे-छोटे व्यावहारिक उपायों से संभव हो जाता है।

संवाद-3 : लक्ष्मण-इंद्रजीत
{युद्ध में जब रावण की सेना पराजित होने लगी, तो उसने अपने सबसे बलशाली और मायावी पुत्र इंद्रजीत (मेघनाद) को रणभूमि में भेजा। {इंद्रजीत ने ललकारा- लक्ष्मण! मेरे धनुष से छूटे तेज धार वाले पंखधारी बाण आज तुम्हारे प्राण लेकर ही रहेंगे। तुम्हारा कवच पृथ्वी पर जा गिरेगा, धनुष भी दूर छिटक जाएगा और मस्तक धड़ से अलग हो जाएगा। {लक्ष्मण बाेले- जो काम किया ही नहीं, उसके लिए व्यर्थ डींगे क्यों हांकते हो? {इसके बाद भीषण युद्ध में लक्ष्मण ने इंद्रजीत का वध कर दिया।
चुनौती: जब कोई आपको सिर्फ बातों से नीचा दिखाने की कोशिश करे और खुद की ही प्रशंसा में लगा रहे।
सीख: तैयारी पर फोकस करें। अपनी एनर्जी ‘खुद को साबित करने’ में नहीं, ‘खुद को बेहतर बनाने’ में लगाएं। बेहतर होंगे, तो खुद ही साबित हो जाएंगे।

संवाद-4 : श्रीराम-रावण
{युद्ध में लक्ष्मण के घायल होने पर श्रीराम ने रावण पर शक्तिशाली आघात किया, जिससे उसका मुकुट कटकर गिर गया और धनुष छूट गया। {श्रीराम ने कहा- रावण! आज मैं तुम्हें जीवित छोड़ रहा हूं ताकि कल लौटकर युद्ध कर सको। {रावण दोबारा युद्ध में उतरा और ललकारा- आज तुम्हारा वध कर दूंगा। {श्रीराम ने कहा- निशाचर! परस्त्री का अपहरण करके स्वयं को शूरवीर समझते हो। तुमने अपनी मृत्यु बुलाई है। {श्रीराम और रावण के बीच दिन-रात युद्ध चला और अंत में रावण मारा गया।
चुनौती: अक्सर लोग अपनी गलती नहीं मानते और जीत के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हो जाते हैं।
सीख: गलती नहीं मानने वाला अंततः नष्ट होता है।
अहंकार और हठ, संवाद और समाधान का दरवाजा बंद कर देते हैं। सच्ची विजय मर्यादा व संयम में है।
(कल पढ़िए …..अंतिम कड़ी उत्तर कांड। इसमें सीताजी से धरती में समाने से श्रीराम के देह त्याग तक के प्रसंग…)