Friday, August 15, 2025

CJI br Gavai on Supreme Court and High Court | CJI गवई बोले- सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट से बड़ा नहीं: दोनों बराबर; जज नियुक्ति में SC कॉलेजियम किसी खास नाम की सिफारिश नहीं कर सकता

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नई दिल्ली3 घंटे पहले

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CJI बीआर गवई ने सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के स्वतंत्रता दिवस के कार्यक्रम को संबोधित किया। - Dainik Bhaskar

CJI बीआर गवई ने सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के स्वतंत्रता दिवस के कार्यक्रम को संबोधित किया।

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) बीआर गवई ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम सिस्टम में हाईकोर्ट से बड़ा नहीं है। दोनों संवैधानिक अदालतें हैं और इनमें से कोई भी एक-दूसरे से न तो बड़ा है, न छोटा।

उन्होंने स्पष्ट किया कि सुप्रीम कोर्ट का कॉलेजियम हाईकोर्ट के कॉलेजियम को जज के पद के लिए खास नाम की सिफारिश नहीं कर सकता है। जस्टिस गवई आज सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) द्वारा स्वतंत्रता दिवस के 79वें समारोह में बोल रहे थे।

इस मौके पर SCBA अध्यक्ष विकास सिंह ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस करने वाले वकीलों को भी हाईकोर्ट में जज बनाने के लिए विचार किया जाना चाहिए, भले ही उन्होंने वहां प्रैक्टिस न की हो।

CJI गवई ने कहा कि जज नियुक्ति की पहली जिम्मेदारी हाईकोर्ट कॉलेजियम की होती है। सुप्रीम कोर्ट सिर्फ नाम सुझा सकता है और हाईकोर्ट से नामों पर विचार करने का अनुरोध करते हैं। हाईकोर्ट की सहमति के बाद ही वे नाम सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम तक पहुंचते हैं।

गवई बोले- कोई भी मामला छोटा नहीं होता

अपने संबोधन में CJI गवई ने स्वतंत्रता संग्राम के नायकों को याद करते हुए कहा कि आजादी सिर्फ राजनीतिक आंदोलन नहीं था, बल्कि यह नैतिक और कानूनी संघर्ष भी था जिसमें वकीलों की बड़ी भूमिका रही। कोई भी मामला छोटा नहीं होता, जो एक के लिए मामूली लग सकता है, वह दूसरे के लिए जीवन, सम्मान या अस्तित्व का सवाल हो सकता है।

गवई ने कहा कि जजों की जिम्मेदारी है कि वे कानून की ऐसी व्याख्या करें जिससे आजादी बढ़े, वंचितों के अधिकार सुरक्षित हों और कानून का राज मजबूत हो। उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन के कई चरणों और नायकों संथाल विद्रोह, बिरसा मुंडा, ज्योतिबा और सावित्रीबाई फुले, रवींद्रनाथ टैगोर, महात्मा गांधी और भीमराव अंबेडकर का उल्लेख किया।

राष्ट्रपति और संथाल समुदाय का उदाहरण दिया

उन्होंने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के उदाहरण से बताया कि संथाल समुदाय, जिसने 1855 में सबसे पहले अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया, आज देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर पहुंच चुका है। उन्होंने कहा कि यह यात्रा बताती है कि भारत ने लंबा सफर तय किया है, लेकिन न्यायपूर्ण, समान और समावेशी भारत बनाने का कार्य अभी बाकी है।

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